Saturday, January 12, 2013

स्वामी विवेकानंद के 10 अनमोल वचन


Generalनई दिल्ली। कलकत्ता में 12 जनवरी 1863 को जन्मे स्वामी विवेकानंद की आज 150वीं जयंती है। युवाओं के लिए प्रेरणास्रोत बने विवेकानंद ने दिए अनमोल विचार- -उठो, जागो और तब तक नहीं रुको जब तक लक्ष्य ना प्राप्त हो जाये. - उठो मेरे शेरो, इस भ्रम को मिटा दो कि तुम निर्बल हो, तुम एक अमर आत्मा हो, स्वच्छंद जीव हो, धन्य हो, सनातन हो, तुम तत्व नहीं हो, ना ही शरीर हो, तत्व तुम्हारा सेवक है तुम तत्व के सेवक नहीं हो। -ब्रह्मांड की सारी शक्तियां पहले से हमारी हैं। वो हम हैं जो अपनी आंखों पर हाथ रख लेते हैं और फिर रोते हैं कि कितना अंधकार है! -जिस तरह से विभिन्न स्त्रोतों से उत्पन्न धाराएं अपना जल समुद्र में मिला देती हैं, उसी प्रकार मनुष्य द्वारा चुना हर मार्ग, चाहे अच्छा हो या बुरा भगवान तक जाता है। -किसी की निंदा ना करें। अगर आप मदद के लिए हाथ बढ़ा सकते हैं, तो जरूर बढ़ाएं। अगर नहीं बढ़ा सकते, तो अपने हाथ जोड़िए, अपने भाइयों को आशीर्वाद दीजिए, और उन्हें उनके मार्ग पर जाने दीजिए। -कभी मत सोचिए कि आत्मा के लिए कुछ असंभव है। ऐसा सोचना सबसे बड़ा विधर्म है। अगर कोई पाप है, तो वो यही है; ये कहना कि तुम निर्बल हो या अन्य निर्बल हैं। -अगर धन दूसरों की भलाई करने में मदद करे, तो इसका कुछ मूल्य है, अन्यथा, ये सिर्फ बुराई का एक ढेर है, और इससे जितना जल्दी छुटकारा मिल जाये उतना बेहतर है। -एक शब्द में, यह आदर्श है कि तुम परमात्मा हो। -उस व्यक्ति ने अमरत्व प्राप्त कर लिया है, जो किसी सांसारिक वस्तु से व्याकुल नहीं होता। - हम वो हैं जो हमें हमारी सोच ने बनाया है, इसलिए इस बात का ध्यान रखें कि आप क्या सोचते हैं। शब्द गौण हैं। विचार रहते हैं, वे दूर तक यात्रा करते हैं। -जब तक आप खुद पर विश्वास नहीं करते तब तक आप भगवान पर विश्वास नहीं कर सकते। -सत्य को हजार तरीकों से बताया जा सकता है, फिर भी हर एक सत्य ही होगा। - विश्व एक व्यायामशाला है, जहां हम खुद को मजबूत बनाने के लिए आते हैं। - इस दुनिया में सभी भेद-भाव किसी स्तर के हैं, न कि प्रकार के, क्योंकि एकता ही सभी चीजों का रहस्य है। -हम जितना ज्यादा बाहर जायें और दूसरों का भला करें, हमारा ह्रदय उतना ही शुद्ध होगा, और परमात्मा उसमे बसेंगे।

Friday, January 11, 2013

भविष्य के नेता हैं विवेकानंद - Swami ji created a sense of nation

भारतीय समाज, विशेषकर युवा पीढ़ी आज एक बहुत बड़े भटकाव और निराशा से गुजर रही है। एक ओर देश का अत्यंत समृद्ध तबका और धनी मध्यमवर्ग है जो अपनी लोक व क्षेत्रीय संस्कृति को भुलाकर, उपभोक्तावादी औपनिवेशिक संस्कृति के खुमार में डूबकर और समाज के सरोकारों से खुद को काटकर एक मूल्य विहीन जीवन शैली को अपनाने में गर्व महसूस करता है। दूसरी ओर एक बहुत बड़ा वंचितों का तबका है, जिसमें दलित, आदिवासी, महिलाएं, छोटे किसान और मजदूर आजादी के 65 वर्ष बाद भी जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं और न्यूनतम लोकतांत्रिक अधिकारों से भी वंचित है। स्वामी विवेकानंद ने ब्रिटिश साम्राज्यवाद के दौर में भारतीय युवाओं में मानवीय मूल्यों पर आधारित सामाजिक विकास और राष्ट्रवाद की भावना का संचार कर इस देश को जो दिशा दी थी, वह आज के समय में भी इस देश और युवाओं के लिए उतनी ही प्रासंगिक और जरूरी है।

भारतीय समाज में जातिवाद और पुरुष प्रधान सामंती सोच के कारण महिलाओं की गैर बराबरी और शोषण हमारे समय की सबसे बड़ी चुनौतियां है। इनका हल निकाले बिना मानवता के उत्थान अथवा धार्मिक-सामाजिक विकास के किसी सिद्धांत पर चर्चा करना बेमानी होगा। जाति व्यवस्था के बारे में स्वामी विवेकानंद का कहना था कि यह एक दोषपूर्ण व्यवस्था है। हमारे देश में अंधविश्वास और बुराइयां बहुत हैं। यह जाति व्यवस्था ही है जिसके कारण आज भी करोड़ों लोगों को भूखे पेट सोना पड़ता है। 'जन्म पर आधारित जाति व्यवस्था या नस्ल पर आधारित भेदभाव वास्तव में प्रकृति के श्रेष्ठतम बौद्धिक और मानसिक क्षमताओं के रूप में हमारे मनुष्य होने की पहचान पर एक बहुत बड़ा प्रश्नचिन्ह है। यह समाज एवं राष्ट्र के रूप में विभिन्न क्षेत्रों में प्रतिभा और क्षमता की तमाम उपलब्धियों के लिखे जा रहे सुनहरे अध्यायों के ऊपर लिपी हुई एक कालिख है, जिसे हम देखना नहीं चाहते।'

स्वामी विवेकानंद के शब्दों में 'इस देश में महिला व पुरुष के बीच इतना अंतर क्यों है, यह समझना बहुत मुश्किल है। वेदों का यह स्पष्ट ऐलान है कि सभी में एक ही और एक जैसी ही चेतना मौजूद है। आप हमेशा महिलाओं की आलोचना करते हैं पर आपने उनके उत्थान के लिए क्या किया है, सिवाय उन्हें कड़े नियमों में बांधने के? पुरुषों ने औरतों को बस बच्चा पैदा करने की मशीन में बदल दिया है। महिला को ऊपर उठाए बिना आपके खुद के आगे बढ़ने का और कोई रास्ता नहीं हो सकता।भारत में महिलाओं को शिक्षा का अधिकार दिलाने में स्वामी विवेकानंद का बहुत बड़ा योगदान है।जिस समय भारत में महिला शिक्षा को धर्माचार्यों द्वारा सम्मान की दृष्टि से नहीं देखा जाता था,उस समय उन्होंने इस विषय में कहा था- 'कौन से शास्त्र है जिनमें आपको लिखा मिलेगा किनारी ज्ञान एवं भक्ति के लायक नहीं हैपतन के दौर में जब धर्माचार्यों ने दूसरी जातियों को वेदपढ़ने के लिए अक्षम घोषित कियातभी उन्होंने महिलाओं को भी उनके अधिकारों से वंचित करदिया। नहीं तो आप पाएंगे वैदिक और उपनिषद काल में मैत्रेयी एवं गार्गी जैसी स्त्रियों नेऋषि-मुनियों के बराबर स्थान प्राप्त किया था। एक हजार ब्राह्मणों की उपस्थिति मेंजो वेदों के बड़ेविद्वान थेगार्गी ने बड़े साहस से याज्ञवल्क्य को ब्रह्म ज्ञान के ऊपर शास्त्रार्थ की चुनौती दी थी।स्त्रियां यदि उस समय ज्ञान की अधिकारी थीं तो आज के समय में ये अधिकार उन्हें क्यों मिलें?'

भारतीय समाज में स्त्री-पुरुष  के प्रेम  यौन संबंधों की प्रकृति एवं उसका आधार मुख्य रूप सेसामंती है। हम सभी इन संबंधों में विवाह संस्था की घटती जरूरत पर चिंता प्रकट करते हैपरभारतीय समाज में परिवार  विवाह संस्था नारी गुलामी को सामाजिक स्वीकृति देने वालीव्यवस्था के रूप में ही मौजूद हैइस पर हम चुप हैं। सामंती संस्कृति और भूमंडलीकरण के बादउपजी औपनिवेशिक संस्कृतिदोनों में ही स्त्री की संपूर्ण ऊर्जाविवेकघरेलू  अन्य श्रम मेंउसके योगदान और उसकी आकाश छूती महत्वाकांक्षाओं और क्षमताओं को नजरअंदाज कर उसकेव्यक्तित्व को पुरुष द्वारा परिभाषित सौंदर्य मानकों तक सीमित कर दिया गया है। पर इस तथ्य सेभी इंकार नहीं किया जा सकता कि भूमंडलीकरण ने महिलाओं को घर की चारदीवारी में कैदरखने की दकियानूसी सोच के खिलाफ विद्रोह की ज़मीन भी तैयार की है। भारत को एकप्रगतिशील समाज बनाने के लिए इस विद्रोह को हमें एक सकारात्मक दिशा देनी होगी।

एक बार भयंकर अकाल पड़ा। स्वामी विवेकानंद का हृदय पीडि़तों की सेवा के लिए भावविभोर होउठा। वे दिन-रात सेवा कार्य के लिए तत्पर रहते। उन दिनों कोई भी साधु-संत या पंडित धर्म यादर्शन पर चर्चा के लिए आते तो सारी चर्चा को बंद करके वे अकाल पीडि़तों की सेवा को हीबातचीत का मुख्य मुद्दा बना देते थे। उसी समय पंजाब प्रांत से 'हितवादीके संपादक पंडितसखाराम गणेश देऊस्कर अपने साथियों के साथ स्वामी जी से मिलने आए। बातचीत के दौरानउन्होंने पूरा समय इस पर केंद्रित कर दिया कि पंडित देऊस्कर के इलाके में अकाल पीडि़तों कोकैसे ज्यादा से ज्यादा भोजन उपलब्ध करवाया जाए। जाने से पहले पंडित सखाराम जी नेनाराजगी जताते हुए कहा कि हमें आपसे धर्म के ऊपर महत्वपूर्ण प्रवचनों और उपदेशों की उम्मीदथी पर हमारा समय व्यर्थ की बातों में बर्बाद हो गया। यह सुनकर स्वामी विवेकानंद काफी गंभीरहो गए और उन्होंने जवाब दिया- 'श्रीमानजब तक मेरे देश का एक कुत्ता भी भूखा हैमेरापहला धर्म उसके लिए भोजन की व्यवस्था करना है।उनका जवाब सुनकर तीनों आगंतुक स्तब्धरह गए। स्वामी जी की मृत्यु के बाद पंडित सखाराम ने उस घटना को याद करते हुए कहा था- 'उनके उन शब्दों ने मेरी सोच को हमेशा के लिए बदल के रख दिया और मुझे अहसास दिलायाकि सच्ची देशभक्ति क्या होती है।'

श्रम पर आधारित काम को हेय दृष्टि से देखने और बिना मेहनत के रातोंरात पूंजीपति बनने काजुगाड़ करने की एक और संस्कृति इधर देश में तेजी से फैल रही है और इसकी गिरफ्त में युवावर्ग सबसे ज्यादा है। मीडिया और मनोरंजन उद्योग से मेहनतकश आम आदमीउसके मुद्दे औरपरिवेश आज पूरी तरह गायब हो चुका है। कुछ राजनीतिक हलकों द्वारा अपने स्वार्थ की पूर्ति केलिए सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का नारा उछाला जा रहा हैजिसका आधार सांप्रदायिक ध्रुवीकरण है।आर्थिक विषमता और जातिवाद का हल खोजे बिना जनता में प्रगतिशील राष्ट्रवाद की भावना कासंचार नहीं किया जा सकता। जब भी यह चुनौती हम अपने सामने रखेंगेअपने संघर्ष का आदिप्रेरणास्रोत स्वामी विवेकानंद को ही पाएंगे।